भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथी दादा पूजे जाते / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सर पर अपने आसमान को,
क्यों हर रोज़ उठाते भैया।
मछली मेंढक से यूँ बोली,
क्यों इतना टर्राते भैया।
मेंढक बोला नियम कायदे,
तुम्हें समझ न आते दीदी।
टर्राने वाले ही तो अब,
शीघ्र सफलता पाते दीदी।
नेता जब टर्राता है तो,
मंत्री का पद प् जाता है।
अधिकारी टर्राकर ही तो,
ऊपर को उठता जाता है।
उछल कूद मेंढक की, मछली,
कहती मुझको नहीं सुहाती।
व्यर्थ कूदने वालों को यह,
दुनियाँ सिर पर नहीं बिठाती।
हाथी दादा सीधे सादे,
नहीं किसी को कभी सताते।
अपने इन्हीं गुणों के कारण,
अब तक घर-घर पूजे जाते।