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हाथी दादा / बालकृष्ण गर्ग

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सूँड़ घूमाते, कान हिलाते,
मस्त झूमते हुए चलें।
जहाँ दिखे गन्ना, लेने को-
हाथी दादा झट मचलें।
       [हिंदुस्तान, 28 जुलाई 1996]