भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथी / प्रभात
Kavita Kosh से
कहते हैं आदिवासी —
हाथी हैं पक्के पियक्कड़
महुआ पीने के लिए वे
झोंपड़ियों को तोड़ देते हैं
हण्डियाओं को फोड़ देते हैं
— फिर कैसे पेश आते हो तुम
ऐसे हाथियों के साथ
क्या सज़ा देते हो
उनके अपराध की
— महुआ पीने से
हाथी अपराधी कैसे हुए
जब चले जाते हैं हाथी
फिर खड़ी कर लेते हैं अपनी झोंपड़ी
26.05.23