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हाथ और दान / हरिऔध
Kavita Kosh से
दान जब तक फूल फल करता रहा।
पेड़ तब तक फूल फल पाता रहा।
दान-रुचि जी में नहीं जिस के रही।
धन उसी के हाथ से जाता रहा।
हित नमूना जो दिखाना है हमें।
जो चहें यह, सुख न सूना घर करें।
तो बना दिल सब दिनों दूना रहे।
दान दोनों हाथ दसगूना करें।
किस तरह तो छूटते धब्बे बुरे।
जो मिली होती भली सोती नहीं।
तो न पाता हाथ का धुल पाप-मल।
दान-जल-धारा अगर धोती नहीं।
पड़ गये पाप की तरंगों में।
नेक करतूत नाव को खोते।
जो न पतवार दान के पाते।
लापता हाथ हो गये होते।