हाथ और फूल / हरिऔध
देखते उस की फबन जो आँख पा।
तो कभी हित से नहीं मुँह मोड़ते।
धूल में तुम हाथ क्यों मिलते नहीं।
भूल है जो फूल को हो तोड़ते।
जो खले दुख किसी तरह का दे।
कब किसे ढंग वह सुहाता है।
क्यों न ले तोड़ फूल फूले वह।
हाथ को फूलना सताता है।
क्यों लगें पूछने-किसी बद ने।
नेक को बेतरह लताड़ा क्या।
हाथ है फूल पर सितम ढाता।
फूल ने हाथ का बिगाड़ा क्या।
कब रहा नोचता न कोमल दल।
कब न कर फलबिहीन कल पाया।
हाथ-खल इन अबोल फूलों पर।
मल मसल कब नहीं बला लाया।
फूल सा सुन्दर फबीला औ फलद।
क्यों बँदे छिद बिध गये पामाल हो।
आग-माला के बनाने में लगे।
हाथ-माली क्यों न माला माल हो।
वह तुझे भी निहाल करता है।
और तू क्या व तेरी नीयत क्या।
फूल में ही मुलायमीयत है।
हाथ तेरी मुलायमीयत क्या।
फूल रस रूप गंध पर रीझे।
किस तरह से सितम सकेगा थम।
क्यों समझ तू सका न कोमलपन।
हाथ क्या यह कमीनपन है कम।
आँख है रूप रंग पर रीझी।
कब महक पा हुई न नाक मगन।
हाथ तुझ में कभी नहीं है कम।
मोह ले जो फूल कोमलपन।
हाथ तुम बचते कि वे मैले न हों।
तोड़ते तो पीर हो जाती हों।
जो लगी होती न लत की छूत तो।
तुम अछूते फूल छूते ही नहीं।
लाल लाल हथेलियाँ हैं पास ही।
जो कमल-दल से नहीं हैं कम भली।
हाथ तुम फ़ैलो न फूलों के लिए।
उँगलियाँ क्या हैं न चम्पे की कली।
हाथ मन लोढ़ो मलो नोचो उन्हें।
है बुरा जो फूल ही रंगत खली।
इस जगत का ही निराला रंग है।
है तुम्हारी ही नहीं रंगत भली।
डालियों से अलग न होने दो।
डोलने के लिए उन्हें छोड़ो।
हैं भले लग रहे हरे दल में।
हाथ फल तोड़ कर न जी तोड़ो।
है समय सुख दुख बना सब के लिए।
औगुनों पर हैं भले अड़ते नहीं।
पाप होगा हाथ मत तोड़ो उन्हें।
क्या पके फल आप चू पड़ते नहीं।
सोच लो है कौन हितकारी, भला।
कौन है पापी, बुरा, बेपीर, खल।
तुम रहे ढेले फलों पर फेंकते।
पर बनाते फल रहे तुम को सफल।
तोड़ कर फल को कतरता क्यों रहा।
खा नहीं सकता उसे जब आप तू।
मत पराये के लिए बेपीर बन।
हाथ पापी लौं करे क्यों पाप तू।
हाथ उन पर किस लिए तुम उठ गये।
और उन को पीटने तुम क्यों चले।
फूल सब हैं फूलते हित के लिए।
हैं भले ही के लिए सब फल फले।