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हाथ मिलाना / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
उम्मीद खत्म हो जाती है जहां से
दूरियां बननी शुरू हो जाती हैं वहीं से
अब तो इन दूरियों से भी
वापस लौटकर आना होता है
किसी को भी नहीं कह सकते
हमेशा के लिए अलविदा
वास्तविकता तो यही है
मुलाकात के समय हाथ मिलाओ
लौटने के वक्त फिर से हाथ मिलाओ
एक बार जुडऩे के लिए एक बार बिछुडऩे के लिए
एक पल में सबको अपना कह दो
दूसरे पल में पराया
इसी तरह की हो गयी है दुनिया।