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हाथ में गर कलम नहीं होता / रचना उनियाल

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हाथ में गर कलम नहीं होता,
शायरी का जन्म नहीं होता।
 
दूर कितने हुए सनम मुझसे,
फ़ासला ये क्यों’कम नहीं होता,
 
गर वफ़ा पर करे भरोसा दिल
बेवफ़ाई का ग़म नहीं होता।
 
ज़िंदगी की हसीन राहों में,
आशिक़ी पे सितम नहीं होता।
 
एक दर्जा मिले बराबर सब,
औरतों पर जुल्म नहीं होता।
 
ख़ानदानी कहें जिन्हें हम- तुम,
उनकी आदत में खम नहीं होता।
 
फ़ज़ल ए रब रहे कहे ‘रचना’,
तो कभी नाम कम नहीं होता।