हाथ में लाठी पकड़ कर इश्क़ फ़रमाएँगे क्या
बाबा-जी कुछ और दिन भी आप जी पाएँगे क्या
डॉक्टर की फ़ीस का सुन कर मरीज़-ए-मोहतरम
ऑपरेशन से ही पहले कूच फ़रमाएँगे क्या
क़ीमतें दालों की भी बढ़ जाएँगी सोचा न था
लोग धक्कों के सिवा अब और कुछ खाएँगे क्या
रस्म-ओ-रह गो अफ़सरों से इस क़दर अच्छी नहीं
हम अगर मक्खन लगाएँ वो न लगवाएँगे क्या