भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ मेॅ जेकरोॅ / नवीन निकुंज
Kavita Kosh से
हाथ मेॅ जेकरोॅ माला छै
फसलोॅ वही घोटाला छै।
सुक्खोॅ मेॅ बैठी केॅ कानै
कहीं दाल मेॅ काला छै।
नगली मछली तक भी जाय छै
कहै कि मॅुह मेॅ छाला छै।
अन्दर सेॅ सब मौज उड़ावै
बाहर लगलोॅ ताला छै।
पीपरो गाछ दिखावै जरलोॅ
पड़ले हेनोॅ पाला छै।
कब तक शुद्ध गाांग ई रहतै
ठामे सौ गो नाला छै।