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हाथ मै इकतारा लेरी, गल मै मोहनमाला / ललित कुमार

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काफिया- बण बिन मोर, बम्बी बिन वासक, सुआ देखा डाल बिना,
               सोना देख सुहागा देख्या, कोयल देखी बाग़ बिन्या,
               चिता मृग शिकारी देख्या, ये नौउ देखे एक जगाह,

हाथ मै इकतारा लेरी, गल मै मोहनमाला,
मोटी-मोटी आँख हूर की, चमकै रूप निराला || टेक ||

हरे-भरे बण के अन्दर, एक सुथरी हूर फिरै थी,
मद-जोबन के जोश नशे मै, होई चूर फिरै थी,
तारया के म्हा चन्द्रमा सा, सुथरा नूर फिरै थी,
उम्र की यांणी दिखी निमाणी, हुई भरपूर फिरै थी,
खिल्या गगन मै भान, शान पै कटरया था चाला ||

रोहणी कैसा रूप परी का, घेटी मै कै दिखै पांणी,
विष्णु जी की खास लक्ष्मी, कै ब्रह्मा की ब्रहमाणी,
कामदेव की रति भूप, कै इंद्र की इन्द्राणी,
कै धर्मराज की लज्जा सै, कै भर्गु की मिश्रानी,
रूप शशि चांदनी रात मै, जणू देरया चाँद उजाला ||

अदा नजाकत पदमनी कैसी, मन ऋषियां के मोहज्या,
रूप-हुश्न का तेज देख, सूरज भी किरण लह्कोज्या,
इसी मीठी बाणी रसीली सुणकै, कोयल भी मंद होज्या,
काले केश देख परी के, घटा सामण की रंग खोज्या,
कमर कै ऊपर चोटी काली, नाग बल खावै काला ||

गंगा कैसा रूप उसका, जह्न्यु ऋषि की पुत्री दिखै,
बतिसी खिली चेहरे पै, श्यान-शक्ल की सुथरी दिखै,
नर-किन्नर देवता मोह्वण नै, स्वर्गलोक तै उतरी दिखै,
रेशम कैसी डोर बदन की, घंणी कसुती गुन्थरी दिखै,
ठाल्ली बैठकै घडी राम नै, कहै ललित बुवाणी आला ||