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हाथ से दुनिया निकलती जायेगी / 'नुशूर' वाहिदी

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हाथ से दुनिया निकलती जायेगी
और दुनिया हाथ मलती जाएगी

हुस्न की रंगत बदलती जाएगी
ये शब-ए-महताब ढलती जाएगी

मुंक़लिब होती रहेंगी फ़ितरतें
ज़िंदगी करवट बदलती जाएगी

ख़त्म हो सकती नहीं सैर-ए-हयात
ज़िंदगी रूक रूक के चलती जाएगी

नौजवानी आरज़ुएँ सब लिए
गिरती जाएगी सँभलती जाएगी

इश्‍क ग़ाफिल ज़ख़्म खाता जाएगा
हुस्न की तलवार चलती जाएगी

यूँ ही इक अरमाँ निकलता जाएगा
यूँ ही इक हसरत मचलती जाएगी

यूँ ही आती जाएगी शाम-ए-विसाल
यूँ ही शम्मा-ए-बज़्म जलती जाएगी

यूँ ही रूख़्सत होती जाएगी ख़ुशी
यूँ ही सुब्ह-ए-ग़म निकलती जाएगी

यूँ ही गाए जाएँगे षेर ‘नशुर’
यूँ ही तबा-ए-ग़म बहलती जाएगी