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हाथ से निकले / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
घटाने से घटे नहीं
बढ़ाने से बढ़े नहीं
बस आप ही आप
नशे सा चढ़े-उतरे
प्यार
रोके से रूके नहीं
बाँधे से बँधे नहीं
हाथ से निकले
जब हाथ में आ जाए
प्यार
उम्र न ज़ात-पाँत
अमीर न ग़रीब
सूरत न सीरत
बस प्यार का ढूँढे
प्यार
बूँद में समदंर में
आकाश में पाताल में
कण-कण में समाया
पर जब चाहें मिले नहीं
प्यार।