भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
इतने छोटे
और कोमल हैं उसके हाथ
कि खो जाते हैं मेरी हथेलियों में
और इतने धारदार कि
फेर देती है गले पर
अक्सर…