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हादसा / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’
Kavita Kosh से
मुखड़ा
वो दर्द में, डूबी पड़ी।
थी चीख की,टूटी लड़ी।
अंतरा-1
ये हादसा,कैसी भला।
बेटी वदन, धू धू जला।
वो नर नहीं,हैवान था।
वो दुष्ट इक,शैतान था।
थी राख बन,भू पर अड़ी।
वो दर्द में, डूबी पड़ी।।
तन वस्त्र वो, था खींचता।
वो बाज सा, था भींचता।।
सर पाँव तक, वो नोचता।
कुछ भी नहीं,मन सोचता।।
थी याचना, करती बड़ी।
वो दर्द में, डूबी पड़ी।।
क्यों आज ये,सब हो रहा।
क्यों काल ये,विष बो रहा।।
कैसे बचे, बेटी यहाँ।
पथ पर बिछें,कांटें जहां।।
ये आ गई, कैसी घड़ी।
वो दर्द में , डूबी पड़ी।।
कितनी बड़ी, ये बात है।
विष से भरी,हर रात है।।
है बढ़ रहा ,अब नीचता।
नारी वसन, है खींचता।।
बेबस बनी, वो है खड़ी।
वो दर्द में , डूबी पड़ी।।