भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हादसे गुज़रे है दिल पर मेरे दो चार अभी / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
हादसे गुज़रे है दिल पर मेरे दो चार अभी
दर्द थम जाएगा लगते नहीं आसार अभी
याद आयी है तेरी फिर मुझे इक बार अभी
भूलना तुझको मुझे लगता है दुश्वार अभी
हमने हर चंद सवालों का दिया चुप से जवाब
फिर भी लफ़्ज़ों की तेरे कम न हुई धार अभी
उसने हमदर्दी का इज़हार किया प्यार नहीं
लो बिखरने लगे रिश्तों के सभी तार अभी
फ़र्क पड़ता नहीं उसको तेरी बर्बादी से
यूँ किया मुझको सहेली ने ख़बरदार अभी
वो हर इक बात का मफ़हूम बदल देता है
उससे कुछ कहना सिया है तेरा बेकार अभी