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हादसों के हैं मुकाबिल हौसले / देवी नांगरानी
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हादसों के हैं मुकाबिल हौसले
किस पे किस का देखना है बस चले
मौत के रहमो-करम पर ज़िन्दगी
शम्अ के मानिंद ही तिल-तिल वो जले
क्या इनायत दोस्तों की कम रही
दुश्मन उनसे भी कहीं बढ़ कर मिले
आपसी रिश्तों में जो आये दरार
नींव ही फिर क्यों न उस घर की हिले
उसके मेरे बीच में आई ख़ुदी
बीच में वर्ना कहाँ थे फासले
हाथ मलती रह गईं आबादियाँ
चल पड़े बरबादियों के सिलसिले
आँखें तो ‘देवी’ हैं दिल का आईना
खोलते हैं राज़, आँसू मनचले