हाफ़िज़ा-ए-ज़िन्दगी है ज़िन्दगी से पेशतर / रवि सिन्हा
हाफ़िज़ा-ए-ज़िन्दगी<ref>ज़िन्दगी की स्मरण-शक्ति (life’s capacity to remember)</ref> है ज़िन्दगी से पेशतर<ref>पहले (before)</ref>
आज हो आये उधर से बिन गए उनके शहर
गो लड़कपन था मगर उसमें भी कोई बात थी
गुज़र लेते हैं उधर से अब भी मौक़े देखकर
उम्र की चोटी फ़तह की इस तरह रफ़्तार से
अह्ले-ग़ाफ़िल चढ़ गए बाहोश उतरे तेज़तर
कौन पढ़ता है यहाँ पर वक़्त का जुग़राफ़िया
बज़्म कश्ती में जवाँ दरिया की रौ से बेख़बर
आलमे-मौजूद<ref>वास्तविक दुनिया (real world)</ref> है या आलमे-मौहूम<ref>काल्पनिक दुनिया (imaginary world)</ref> है
एक बातिल<ref>झूठ (lie, untruth)</ref> सामने तो वाक़िए<ref>घटनाएँ (incidents)</ref> सौ बेअसर
दौड़ता रह तेज़ अपनी जगह पर टिकना है तो
यूँ तिलिस्मी है मगर तिश्ना-ए-ख़ूँ<ref>ख़ून का प्यासा (bloodthirsty)</ref> है ये दहर<ref>युग, समय (era, time)</ref>
आग उगले है तो उसको ग़र्क़ कर देने की सोच
शाम तक हो जायगा वो नातवाँ<ref>कमज़ोर (weak)</ref> ओ बेशरर<ref>बिना चिनगारी के (without spark)</ref>
है रवाँ तारीख़ ये इमरोज़<ref>आज का दिन (today)</ref> बे-फ़र्दा<ref>जिसका कल न हो (without a tomorrow)</ref> नहीं
लाज़िमी है मोड़ सद सदियों चलेगा ये सफ़र
क्या कहे कोई सभी पर गुफ़्त-ए-ग़ालिब<ref>ग़ालिब की अभिव्यक्ति (Ghalib’s sayings)</ref> का रंग
अदब होता है उसी जादू से मिसरे खेंचकर