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हाफ़िज़ा गोश में गुनगुनाती रही / रवि सिन्हा
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हाफ़िज़ा<ref>स्मृति (Memory)</ref> गोश<ref>कान (Ear)</ref> में गुनगुनाती रही
धुन पुरानी सी कोई सुनाती रही
आप बैठे हुए थे मिरे सामने
आप ही की मगर याद आती रही
हमको जाना उधर है जो होने को है
हो चुके की सदा<ref>पुकार (Call)</ref> क्यूँ बुलाती रही
रात के साज़<ref>बाजे (Musical Instruments)</ref> में तो थे इम्काँ<ref>सम्भावना (Possibility)</ref> बहुत
राग चौथे पहर के बजाती रही
उनके जाने की घड़ियाँ तड़पती रहीं
उनके आने की आहट भी आती रही
बीत जाने से लम्हे वो दाइम<ref>चिरन्तन (Eternal)</ref> हुए
याद घर को उन्हीं से सजाती रही
हर नई शाख़ फूटी किसी ज़ख़्म से
ज़िन्दगी पेड़ होना सिखाती रही
शब्दार्थ
<references/>