हाय चील, सुनहले डैने की चील, इस भीगे मेघ की दुपहरी में
रो-रो और उड़ो नहीं तुम धानसीढ़ी नदी के आसपास...
तुम्हारे गले स्वर में बेंतफल-सी उसी म्लान आँख याद आती है
उसकी, जो किसी राजकन्याओं की तरह रूप धरे पृथ्वी से दूर चली गयी है
फिर, क्यों लाते हो बुला? जी को कुरेद कौन चाहता है घाव जगाना
हाय चील, सुनहले डैने की चील, इस भीगे मेघ की दुपहरी में
रो-रो उड़ो नहीं, तुम धानसीढ़ी नदी के आसपास...