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हाय हाय राम जी मेरी ना आई / मेहर सिंह

सावित्री अपने मन में विचार करती है-

हाथ झाड़ कै बैठ गई नणदी के भाई
हाय हाय राम जी मेरी ना आई।टेक

क्युंकर बांधू दिल पै ढेठ
मेरे कोए ना देवर जेठ
पेट पाड़ कै बैठ गई तेरी जननी माई।

तेरी ना रही जीवण की आस
मेरा न्यूं होग्या चित उदास
पास नाड़ कै बैठ गई जळी मौत बिलाई।

मनै सब क्यांहे का डर
छूटग्या देस नगर और घर
नजर काढ़य कै बैठ गई जाता दिया ना दिखाई।

बिगड़गे जिन्दगी के सब ठाठ
नहीं थी किसै तै घाट
मेहर सिंह जाट हार कै बैठ गई ना पार बसाई।