भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हारल के हरिनाम / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वाजिब बात कहियो?
कि जब तक तो कड़ा नै होबऽ हा
जब तक तों उठ के खड़ा नै होबऽ हा
तब तक
झखला हे झक्खो
लेकिन याद रक्खो
तोहर औलाद पर
ई असरतो
ओकर आँख में
लाल डिढ़िर जब पसरतो
तब छठियारी दूध के इयाद
दुस्मन के छक्का छोड़ा देतो
तोड़ देतो ऊ
धरम करम के जाल
ठोंक देतो दुस्मन पर ताल
तहूं कोशिस करो कि
तोरो मन के मुरदा जग जाय
तोरा देख के
हर आदमी के
अंदर के आग सुलग जाय
नै तो सहला हे
सहऽ हा, सहवा।
हारल के हरि नाम
अंत में
सीताराम सीताराम