हार्ड बाउंड डायरी / मुकेश कुमार सिन्हा
काश एक पूरी मानव जिंदगी को
देख सकें हार्ड बाउंड डायरी में समेट कर
अधिकतर पन्नें होंगे ऐसे
रूटीन कार्यों से भरें हो जैसे
जैसे समय से खाया-पीया
थोड़ी बहुत जरूरत के लायक
निगल ली साँसे, और सो गए
फिर औंधे मुंह...
मतलब पन्ने बेशक पलट गए
पर न बदली ये जिंदगी
कुछ पन्नें रहें होंगे कोरे
आखिर कुछ दर्द, कुछ कठिनाइयाँ
शब्दों में कहाँ बंध पाते हैं
किसी किसी पन्नें पर
होगी लिखावट बेतरतीब, जल्दबाज़ी की
क्योंकि जिंदगी में कई दिन होते हैं ऐसे
जिसमें न मिलता है सुकून, न होता है दर्द
पर पूरे दिन भागते हैं जैसे तैसे
कुछ खास पन्नें, थे स्टार-मार्क किए
जैसे कुछ तो ऐसा किया, जो था अहम
दिल से जुड़ा, जिंदगी से जुड़ा
और हाँ, दो-चार पन्ने में लगे थे फ्लेप
आखिर दो दिलों का मिलना
जिंदगी में नए रिश्तों का गढ़ना
नए अहसासों का जन्म लेना आदि
जैसे महत्वपूर्ण अद्वितीय सहेजे हुए पल
खूबसूरती से...
पर अंतिम पन्ना!! उफ़्फ़!!
था कोने से फटा
आखिर मृत्यु के लिए
यही तो है एक अकस्मात सूचना...
मानव जीवन की जिंदगी
थी हार्ड बाउंड डायरी में उकेरीत...!!