हार कर जो राह पर चलते नहीं हैं / रंजना वर्मा

हार कर जो राह पर चलते नहीं हैं।
काफ़िले में वो टिके रहते नहीं हैं।।

छोड़ देती है नदी पीछे उन्हीं को
जो लहर के साथ में बहते नहीं हैं।।

है घुटन उन का गला ही घोंट देती
पीर जो दिल की कभी कहते नहीं हैं।।

कौन उनके साथ रह पाया कभी भी
स्नेहमय सद्भाव जो रखते नहीं हैं ।।

साथ दें जो सत्य का आदर्श पालें
वे किसी भी मूल्य पर बिकते नहीं है।।

उँगलियाँ उठने लगीं हर ओर देखो
लोग अब अन्याय को सहते नहीं हैं।।

मोह में पड़ तरु न जो पत्ते गिराते
पुष्प मधुऋतु में कभी खिलते नहीं हैं।।

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