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हार गई निठुराई / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
फिर पगली बदली घिर आई
परसे परदेसिन पुरवा के स्मृति स्नेह-लता लहराई
बाती जली दर्द-दंशन की
साँस-साँझ सिमटी जीवन की
शिथिल हुए स्वर आमन्त्रण के
दिन विहँसे धुँधले दर्पण के
मेरी परवशता से परिचित, पपीहा ने आवाज़ लगाई
प्यासे नैन छलकते पानी
अधर न कहते राम कहानी
बूँद अगर अँगिया न भिगोती
पलक न हीरक हार पिरोती
मुझ से हार गए सावन-घन, तुमसे हार गई निठुराई
ये मौसम पाहुना, बटोही !
सुधि के पंख पसार निर्मोही ! !
कब तक थामूँ धीरज-धागा
यह दिन भी ढल गया अभागा
मेरी नींद पतंग हो गई क्यों कर इतनी डोर बढ़ाई ?