हालीना पोस्वियातोव्स्का / परिचय
एक परिचय
भयानक रूप से हृदय रोग से ग्रस्त होने के कारण हालीना पस्वीतोव्स्कया (यह पोलिश उच्चारण है)ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा अस्पतालों में ही गुज़ारा। एक अस्पताल में ही उनकी मुलाक़ात अपने पति अलफ़्रेड रिखर्ड पस्वीतोव्स्की से हुई। अल्फ़्रेड भी हालीना की तरह ही बेहद बीमार थे। 20 अप्रैल 1954 को दोनों ने पोलैंड के क्राकोव प्रदेश के चेंस्ताख़ोव नगर में विवाह कर लिया। इस विवाह के दो वर्ष बाद ही, जब हालीना सिर्फ़ 21 वर्ष की थीं, उनके पति की मृत्यु हो गई । 1958 में वे अपना इलाज कराने के लिए अमरीका गईं, जहाँ उनका एक बड़ा दिल का आपरेशन किया गया। अमरीका से लौट कर उन्होंने क्राकोव के याग्गेलोन विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम०ए० की डिग्री ली और फिर वहीं विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगीं। 1967 में उनका स्वास्थ्य बुरी तरह से गिर गया । डाक्टरों ने फिर से उनके दिल का आपरेशन करने का निर्णय लिया। आपरेशन के आठवें दिन 11 नवम्बर 1967 को बत्तीस वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। उनको व उनके पति को एक ही क़ब्र में चेंस्ताख़ोव में दफ़नाया गया । 9 मई 2007 को उनके चेंस्ताख़ोव स्थित घर में उनका संग्रहालय बना दिया गया है।
हालीना पोस्वियातोव्स्का का जीवन और कविता --सिद्धेश्वर सिंह
हालीना पोस्वियातोव्सका के जीवन और कविताओं से गुजरते हुए अगर बार - बार निराला की पंक्ति याद आती रही -' दु:ख ही जीवन की कथा रही.'
हिन्दी कविता के प्रेमियों और पाठकों को लग सकता है कि महादेवी वर्मा की याद क्यों नहीं आई? हिन्दी कविता के पढ़ने - पढ़ाने वाली बिरादरी में महादेवी को दु:ख , पीड़ा और विरह का कवि माना जाता है.अपनी बात की तसदीक में उनकी बहुत कविताओं के मुखड़े पेश किए जा सकते हैं , मसलन -
- पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला.
- आज दे वरदान !
वेदने वह स्नेह - अंचल - छाँह का वरदान !
लेकिन इस बात से यह अनुमान न लगा लिया जाय अथवा धारणा न बना ली जाय कि हालीना और महादेवी की कविताओं में कोई समानता है या कि स्त्री होने के कारण व दु:ख तथा प्रेम की घनीभूत सांद्र उपस्थिति के कारण समनता के काव्यमय तंतुजाल तलाश किए जाएं.दोनो की भाषा अलग है , भूगोल अलग है , समय और समाज की निर्मिति व्याप्ति अलग - अलग है फिर भी न जाने क्यों हालीना की कविताओं से गुजरते हुए लगभग पूरा छायावाद याद आता रहा , संभवत: इसलिए भी कि वहाँ जो नहीं है , उसका यहाँ दीखना केवल चमत्कृत और चकित नहीं करता बल्कि हिन्दी कविता के प्रेमी व पाठक होने के नाते इस बात का अनुभव होता है कि अपने निकट के अतीत की हिन्दी कविता में उस पर बात होनी चाहिए जो कि जरूरी था किन्तु छूट गया है. दु:ख और ऊहात्मकता , प्रेम और ऐन्द्रिकता के घालमेल के बाबत जो साफगोई हालिना के यहाँ है , उसका हिन्दी कविता में गैरहाजिर होना खलता तो जरूर है. यही कारण है कि आधुनिक पोलिश कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर पर बात करते - करते आधुनिक हिन्दी कविता पर बात करने की जरूरत आन पड़ी. ऐसा इसलिए भी कि यह अनुवाद मूलत: और अंतत: उसी पाठक के लिए है जो कि हिन्दी का पाठक है और उसे विश्व कविता के बरक्स देखने - परखने का हिमायती है.
हालीना पोस्वियातोव्सका की कवितायें पढ़ते समय हम इस बात से सजग रहते हैं कि पोलिश कविता की समृद्ध और गौरवमयी परम्परा में वह एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं .उनकी कवितायें उनके अपने जीवन की ही तरह कलेवर में 'लघु' हैं , न केवल कलेवर में बल्कि कहने अंदाज में भी 'लघु' किन्तु अपनी लघुता व निजता में निरन्तर एक 'रिजोनेन्स' पैदा करती हुई. हालीना की कवितायें यह स्पष्ट और बिना लाग लपेट के बताती हैं कि दरअसल जीवन और मृत्यु के बीच का अंतराल ही हमारी भूमिका है , रंगमंच पर अपना पार्ट अदा करने के वास्ते दिया गया स्पेस . अस्तु , इसी में वह सब कर गुजरना है जिसकी चाह है , इसे नियति मान लेना निष्क्रियता है - एक तरह से अपने से , खुद से नफरत करने जैसा कोई काम. इस आलोक में पेम एक वायवी वस्तु बनकर नहीं रह जाता है और न ही ऐन्द्रिकता सिर्फ देह.जिस तरह प्रकृति में तमाम चीजें प्रकट व विलुप्त होती रहती हैं वैसे ही हालिना की कविताओं में व्याप्त दु:ख और मत्यु की छायाएं अवतरण व अवसान के क्षण हैं न कि उत्पन्न होने और विनष्ट होने की गौरव गाथायें. एक जगह वह कहती हैं -
मैंने अपनी अंतरात्मा के साज दुरुस्त कर लिए हैं
अब गाती है मेरे लिए मिठास
जिस तरह भोर में
गाती है चिड़िया
प्रस्तुत अनुवाद कविता के प्रेमियों के लिए कविता के प्रेमियों द्वारा किया गया अनुवाद है. ऐसे प्रेमियों के लिए जिनकी निगाह में कविता सिर्फ कविता है उसे किसी एक भाषा की सीमा में महदूद कर देखने हामी नहीं. यह विश्व कविता की विपुल थाती से लिया गया एक कण भर है शायद ! साथ ही यह कहने में कोई संकोच नहीं है पोलिश कविता की समृद्ध और गौरवमयी परम्परा से रू - ब-रू होने के लिए हालीना पोस्वियातोव्सका की कविताओं को देखना - परखना बहुत जरूरी है.
जहाँ तक अपनी जानकारी है हिन्दी में हालीना की कविताओं अनुवाद -उपस्थिति बहुत विरल है. यही कारण था कि इस नोट का एक हिस्सा हिन्दी कविता के बाबत सायास लिखा गया . देखते हैं इस विरलता को सरलता में बदलने के काम में ( नवारुण भट्टाचार्य के शब्दों में कहें तो ) - 'आखिर एक किताब मचा सकती है कितना कोलाहल !'