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हाल पूछ कर आएँ / सीमा अग्रवाल

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चलो आज उस ठौर ठिए का
हाल पूछ कर आएँ
जहाँ बैठ माँ अक्सर
सबकी राह तका करती थी

बार बार छज्जे तक आना
बार बार झल्लाना
जैसे जैसे समय बढ़े
देवी-देवता मनाना

निमिष निमिष पर
घबरा कर मन्नतें नई रखती थी

ढाढस, मायूसी, अधीरता
रोष कभी कौतूहल
आँचल से बिखरे होंगे
जाने ऐसे कितने पल

क़दम क़दम पर ममता के
जादू टोने धरती थी

खट्टे-मीठे सम्वादों की
ख़ुशबू से तर होगी
धूप-छांव-बारिश ओढ़े वह
हवा वहीं पर होगी

आँखों ही आँखों से माँ
जिससे सब कुछ कहती थी