भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाव भाव विविध दिखावै भली भाँतिन सों / बेनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाव भाव विविध दिखावै भली भाँतिन सों,
मिलत न रतिदान जोग सँग जामिनी।
सुबरन भूषन सँवारे ते विफल होत,
जाहिर किये ते हँसैं नर गजगामिनी।
रहै मन मारे लाज लागत उघारे बात,
मन पछितात न कहत कहूँ भामिनी।
बेनी कवि कहैं बड़े पापन तें होत दोऊ,
सूम को सुकवि औ नपुँसक को कामिनी।


बेनी का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।