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हाशिया / मुकेश प्रत्‍यूष

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जैसे उठाने से पहले कौर
निकालता है कोई अग्रासन
उतारने से पहले बिछावन से पैर
करता है कोई धरती को प्रणाम
तोड़ने से पहले तुलसी का पत्ता या लेने से पहले गुरु का नाम
पकड़ता है कोई कान

वैसे ही लिखने के पहले शब्द
तय करता है कोई हाशिये के लिये जगह

जैसे ताखे पर रखी होती है लाल कपड़े में बंधी कोई किताब
गांव की सीवान पर बसा होता है कोई टोला
वैसे ही पृष्ठ पर रहकर भी पृष्ठ पर नहीं होता है हाशिया

मोड़कर या बिना मोड़े
दृश्य या अदृयस तय की गई सीमा
अलंध्य होती है हाशिये के लिये
रह कर भी प्रवाह के साथ
हाशिय बना रहता है हाशिया ही
तट की तरह
लेकिन होता नहीं है तटस्थ

हाशिया है तो निश्चिंत रहता है कोई
बदल जाये यदि किसी शब्द या विचार का चलन
छोड़ प्रगति की राह यदि पड़ जाये करनी प्रयोगधर्मिता की वकालत

हाशिये पर बदले जा सकते हैं रोशनाई के रंग
हाशिये पर बदले जा सकते हैं विचार
हाशिये पर किये जा सकते हैं सुधार
इस्तेमाल के लिये ही तो होता है हाशिया

बिना बदले पन्ना
बदल जाता है सबकुछ

बस होती है जरुरत एक संकेत चिह्न की

जैसे बाढ़ में
पानी के साथा आ जाते हैं बालू
जद्दोजहद में बचाने को प्राण आ जाते हैं सांप
मारते सड़ांध पशुओं के शव
कभी-कभी तो आदमियों के भी
और चले जाते हैं लोग छोड़कर घर-बार
किसी टीले या निर्वासित सड़क पर
वैसे ही
झलक जाती है जब रक्ताभ आसमान के बदले गोधूली की धुंध
हाशिया आ जाता है काम

पर भूल जाते हैं कभी कभी छोड़ने वाले हाशिया
हाशिये पर ही दिये जाते हैं अंक
निर्धारित करता है परिणाम हाशिया ही
हाशिया है तो हुआ जा सकता है सुरक्षित।