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हाशिया / राजा खुगशाल
Kavita Kosh से
बाज़ार में
शेयर की तरह घटे नहीं
बढ़े नहीं उसके दाम
वह बिका नहीं
उसे किसी ने ख़रीदा नहीं
महानगर की जेब में वह
खोटे सिक्के की तरह पड़ा रहा
वह डिब्बे में बन्द
ऐसा वृत्त-चित्र है
जिसे पर्दे पर प्रदर्शन के लिए
प्रायोजक नहीं मिले
वह एक ऐसा हाशिया है
जो धीरे-धीरे फैलता गया
पूरे पन्ने पर।