भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हास्य-रस -पाँच / अकबर इलाहाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


फ़िरगी से कहा, पेंशन भी ले कर बस यहाँ रहिये
कहा-जीने को आए हैं,यहाँ मरने नहीं आये


बर्क़ के लैम्प से आँखों को बचाए अल्लाह
रौशनी आती है, और नूर चला जाता है

काँउंसिल में सवाल होने लगे
क़ौमी ताक़त ने जब जवाब दिता


हरमसरा की हिफ़ाज़त को तेग़ ही न रही
तो काम देंगी ये चिलमन की तीलियाँ कब तक ?


ख़ुदा के फ़ज़्ल से बीवी-मियाँ दोनों मुहज़्ज़ब हैं
हिजाब उनको नहीं आता इन्हें ग़ुसा नहीं आता

माल गाड़ी पे भरोशा है जिन्हें ऐ अकबर
उनको क्या ग़म है गुनाहों की गिराँबारी का?

ख़ुदा की राह में बेशर्त करते थे सफ़र पहले
मगर अब पूछते हैं रेलवे इसमें कहाँ तक है?