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हा, मुझे जीना न आया / हरिवंशराय बच्चन

हा, मुझे जीना न आया!

नेत्र जलमय, रक्त-रंजित,
मुख विकृत, अधरोष्ठ कंपित
हो उठे तब गरल पीकर भी गरल पीना न आया!
हा, मुझे जीना न आया!

वेदना से नेह जोड़ा,
विश्व में पीटा ढिंढोरा,
प्यार तो उसने किया है, प्यार को जिसने छिपाया!
हा, मुझे जीना न आया!

संग मैं पाकर किसी का
कर सका अभिनय हँसी का,
पर अकेले बैठकर मैं मुसकरा अब तक न पाया!
हा, मुझे जीना न आया!