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हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ / फ़िराक़ गोरखपुरी
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हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ
फरोज़ाँ फरोज़ाँ दरख्शाँ दरख्शाँ
तेरे जुल्फ-ओ-रुख़ का बादल ढूंढता हूँ
शबिस्ताँ शबिस्ताँ चाराघाँ चाराघाँ
ख़त-ओ-ख़याल की तेरे परछाइयाँ हैं
खयाबाँ खयाबाँ गुलिस्ताँ गुलिस्ताँ
जुनूँ-ए-मुहब्बत उन आँखों की वहशत
बयाबाँ बयाबाँ गज़लाँ गज़लाँ
लपट मुश्क-ए-गेसू की तातार तातार
दमक ला'ल-ए-लब की बदक्शाँ बदक्शाँ
वही एक तबस्सुम चमन दर चमन है
वही पंखूरी है गुलिस्ताँ गुलिस्ताँ
सरासार है तस्वीर जमीतों की
मुहब्बत की दुनिया हरासाँ हरासाँ
यही ज़ज्बात-ए-पिन्हाँ की है दाद काफी
चले आओ मुझ तक गुरेजाँ गुरेजाँ
"फिराक" खाज़ीं से तो वाकिफ थे तुम भी
वो कुछ खोया खोया परीशाँ परीशाँ