हिंदी दोहे-2 / रूपम झा
हिंदी बस भाषा नहीं,है भारत की शान।
हिंदी से ही हिन्द की, जग में है पहचान।।
जीवन हो लंबा नहीं, पर हो बड़ा जरूर।
इस खातिर में जी रही, खुलकर इसे हुजूर।।
आभासी संसार में, खोज रहे हम प्यार।
जबकि जानते मतलबी, कलयुग का संसार।।
सुख-दुख में हो एक-सा, वह सच्चा संबंध।
बह जाए जो वृष्टि में, वह कैसा तटबंध।।
वृद्धाश्रम हैं खुल रहे, और रह रहे वृद्ध।
कैसा हुआ विकास है, कैसे हुए समृद्ध।।
पार्टी के सँग कर रहे, सहमति और विरोध।
नेताओं में खो गया, कहाँ स्वयं का बोध।।
आप कहीं भी जाइए, कर लें जतन तमाम।
मिलता पर घर के सदृश, नहीं कहीं आराम।।
लोग बने बगुला भगत, रखते मेल-मिलाप।
जब तक फँस जाएँ नहीं, मछली जैसे आप।।
किसे पता है कल भला, कैसे हों हालात।
करो आज का आज ही, छोड़ो कल की बात।।