भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिंदी में खुद को है पाया / भावना सक्सैना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थपकी से सोती थी जब मैं
हिंदी में सुनती थी लोरी
बाहों के पलने में भी
बाँधी हिन्दी ने ही डोरी।

साँसे माँ की, माँ के गीत
हिंदी में महसूस किए
दिल के सारे ही रिश्ते
हिंदी में अब तक हैं जिए।

पाठ पढ़ा जब भी अंग्रेजी
हिंदी ने विश्वास दिया
बनी स्नेह भरा आलंबन
मित्रों का उपहार दिया॥

मौन भी बांचा क ख ग ने
भावों में मृदु तान भरी
तरल प्रेम उतरा नैनों में।
हिंदी में तब बाँधी डोरी

हिंदी मन में रही सिखाती
अंग्रेजी जब-जब बोली
पग पग पर साथ निभाया
सदा रही मेरी हमजोली

हिंदी लेकर दूर गयी
दुनिया में सम्मान दिलाया
रग रग में भरी स्फूर्ति
हिंदी में ख़ुद को है पाया।