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हिंदू राष्ट्र के शहीदों के प्रति / अंशु मालवीय
Kavita Kosh से
जहाँ जली वह ट्रेन
उसके अगले स्टेशन पर हिंदू राष्ट्र था।
जैसे विश्व विजय थी
कारगिल के उस पार
हालांकि अभी मंज़ूर नहीं थी अमेरिका को
वैसे ही जैसे
अमेरिका और अम्बानी दोनों को मंज़ूर नहीं था
फिलहाल हिंदू राष्ट्र
जले दुधमुंहे बच्चे
अभी जिन्हें हिंदू बनाया जाना था
जली वे औरतें
जो धरम के कारखानें में
दिहाड़ी मजदूर थी
जले वे बेचारे पुरूष
जिन्हें ठोक-पीट कर मर्द बनाया जा रहा था।
जलते हुए इन मासूमों की चीख
राष्ट्रगान लगी
अगले स्टेशन पर बैठे लोगों को।
जिन्होंने ट्रेन में आग लगाई
उनका राष्ट्र पिछले स्टेशन पर छूट चुका था।
(गोधरा में मारे गए लोगों के लिए)