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हिकायत-ए-ख़लिश-ए-जान-ए-बेक़रार न पूछ / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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हिकायत-ए-ख़लिश-ए-जान-ए-बेक़रार न पूछ!
शुमार-ए-शाम-ओ-सहर ऐ निगाह-ए-यार! न पूछ!

हमारे दिल की ख़बर हम से बार बार न पूछ!
जो सच कहेंगे तो गुज़रेगा ना-गवार! न पूछ!

जो आ रही है शब-ए-ग़म वो कैसे गुज़रेगी?
गुज़र चुकी जो मिरी शाम-ए-इन्तिज़ार, न पूछ!

शराब-ओ-शे’र-ओ-ग़ज़ल,नग़्मा-ओ-रबाब-ओ-चंग
रम-ए-नफ़स का ये सामान-ए-ऐतिबार! न पूछ!

मैं अपने सामने हूँ और नज़र नहीं आता!
गु़बार-ए-ख़ातिर-ए-हस्ती-ए-नाबकार न पूछ!

कहाँ कहाँ न मिला हम को दाग़-ए-रुस्वाई?
दराज़-दस्ती-ए-दामान-ए-तार-तार न पूछ!

शिकस्तगी ही त’आरुफ़ को मेरे काफी है
मेरे नुमूद-ओ-हक़ीक़त, मिरा दयार न पूछ!

हम अह्ल-ए-दिल हैं समझते हैं राज़-ए-हस्त-ओ-बूद
खिज़ां के भेस में रंगीनी-ए-बहार? न पूछ!

मक़ाम-ए-शौक़ में किन मंज़िलों से गुज़रा है!
ये तेरा अपना ही "सरवर"!ये जाँनिसार! न पूछ