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हिचकियाँ कुछ हज़ार छोड़ी हैं / पूजा बंसल
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हिचकियाँ कुछ हज़ार छोड़ी हैं
यादें दीवानावार छोड़ी हैं
देखने को वफ़ा पतंगों की
डोरियाँ बार बार छोड़ी हैं
सिलसिला गुफ़्तगू का टूटे नहीं
तुम पे बातें उधार छोड़ी हैं
प्यार शायद शगुन का सिक्का था
रुत चवन्नी सी चार छोड़ी हैं
कश्तियाँ ख़्वाब की चलीं शब भर
सुब्ह सहरा के पार छोड़ी हैं
एक शब मुश्कबार छूकर की
चाहतें यू सँवार छोड़ी हैं
सारी दुनिया में हो गये रुसवा
तेरी गलियाँ न यार छोड़ी हैं
तेरी नज़रों के इक इशारे पर
ख़्वाहिशें बेशुमार छोड़ी हैं
मेरे जीने को उस सितमगर ने
धड़कने किश्तवार छोड़ी हैं