हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा / 'बेख़ुद' देहलवी
हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
ये वो नशा है तुम्हें बे-हिजाब कर देगा
मेरा ख़याल मुझे कामयाब कर देगा
ख़ुदा इसी को ज़ुलेखा का ख़्वाब कर देगा
मेरी दुआ को ख़ुदा मुस्तजाब कर देगा
तेरा गुरूर मुझे कामयाब कर देगा
ये दाग़ खाए हैं जिस के फ़िराक़ में हम ने
वो इक नज़र में उन्हें आफ़ताब कर देगा
किया है जिस के लड़कपन ने दिल मेरा टुकड़े
कलेजा खून अब उस का शबाब कर देगा
सुनी नहीं ये मसल घर का भेदी लंका ढाए
तुझे तो दिल की ख़बर इजि़्तराब कर देगा
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा
किसी के हिज्र में इस दर्द से दुआ माँगी
निदाएँ आईं ख़ुदा कामयाब कर देगा
ग़म-ए-फ़िराक में गिर्ये का शुग़ल समझा था
ख़बर न थी मेरी मिट्टी ख़राब कर देगा
किस ख़बर थी तेरे जुल्म के लिए अल्लाह
मुझी को रोज़-ए-अज़ल इंतिख़ाब कर देगा
उठा न हश्र के फ़ित्ना को चाल से नादाँ
तेरे शहीद का बेलुत्फ़ ख़्वाब कर देगा
वो गालियाँ हमें दें और हम दुआएँ दें
ख़जिल उन्हें ये हमारा जवाब कर देगा
जवाब-ए-साफ़ ने दे मुझ को ये वो आफ़त है
मेरे सुकून को भी इजि़्तराब कर देगा
कहीं छुपाए से छुपता है लाल गुदड़ी में
फ़रोग-ए-हुस्न तुझे बेनक़ाब कर देगा
तेरी निगाह से बढ़ कर है चर्ख़ की गर्दिश
मुझे तबाह ये ख़ाना-ख़राब कर देगा
डुबोएगी मुझे ये चश्म-ए-तर मोहब्बत में
ख़राब काम मेरा इजि़्तराब कर देगा
रक़ीब नाम न ले इश्क़ का जता देना
ये शोला वो है जला कर कबाब कर देगा
वफ़ा तो ख़ाक करेगा मेरा अदू तुम से
वफ़ा के नाम मिट्टी ख़राब कर देगा
अजीब शख़्स है पीर-ए-मुग़ाँ से मिल ज़ाहिद
नशे में चूर तुझे बेशराब कर देगा
बड़ों की बात बड़ी है हमें नहीं बावर
जो आसमाँ से न होगा हुबाब कर देगा
भलाई अपनी है सब की भलाई में ‘बेख़ुद’
कभी हमें भी ख़ुदा कामयाब कर देगा