Last modified on 26 फ़रवरी 2008, at 03:17

हिज्र में उसके जल रहे जैसे / देवी नांगरानी

हिज्र में उसके जल रहे जैसे
प्राण तन से निकल रहे जैसे।

जो भटकते रहे जवानी में
वो कदम अब संभल रहे जैसे।

मौसमों की तरह ये इन्सां भी
फ़ितरत अपनी बदल रहे जैसे।

दर्द मुझसे ज़ियादा दूर नहीं
पास में ही टहल रहे जैसे।

आईना रोज़ यूँ बदलते वो
अपने चेहरे बदल रहे जैसे।

साँस लेते हैं इस तरह 'देवी'
सिसकियों में हों पल रहे जैसे।