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हित्या रौ उच्छब / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
ओ देख
जाजम माथै बैठौ है
थारौ हित्यारौ
अमल री किरची लेय
थारै त्याग री
कथा बखांणतौ
आखी बस्ती नै
मनवार कर कर
जीमावै है पांचूं पकवान
इणरै वास्तै तौ
थारौ जावणौ
खुद रै रूतबै री
ओळखांण रौ
एक जळसौ है
आपरी हित्या रौ
ओ उच्छब तौ
देखती जा मां