भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिन्दी-स्तवन / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जय हे ! जय हे !! जय है भारति !!!
जय हे जननी हिंदी !
अयि ! भारत मा के विशाल माथे की
चमचम तारक बिंदी !!!
जय हिंदी ! जय-जय हे हिंदी !!

1
चरण चूमते ‘तुलसी’ के दल
‘सुर’-सिंधु पद-पद्म पखारे
मंगल गाये दास ‘कबीरा’
‘मीरा’ छवि आरती उतारे

2
छवि छंदों के पद्म चढ़ाते
पद-पद्मों पर कवि पद्माकर
रत्नाभरण सौंपते मनहर
कवि ‘रत्नाकर’ अंजलि भर-भर

3
‘केशव’, ‘देव’, ‘बिहारी’, ‘भूषण’
गाते हैं तव विरूदावलियाँ
‘पंत‘, ‘प्रसाद’, ‘निराला’ अर्पित-
करते पद पर सुमनांजलियाँ

4
मा ! तव छवि श्रृंगार प्रकृति-श्री
गंगा-यमुना की जल-माला
हिम किरीटनी ! तुमने भारत-
के प्राणों में भरा उजाला

5
‘कालिदास’, ‘भवभूति’, ‘माघ’-
भी आतुर हैं पद-रज पाने को
आकुल हैं ‘भारवी’ कालमयि !
प्राणों का रस बरसाने को

6
स्नेहमयी ! तुम किसी एक की
नहीं, सकल संसार तुम्हारा
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
चारों ओर प्रसार तुम्हारा

7
अयि वीणा-वादिनि ! ममतामयि !
कोटि-कोटि कंठों की वाणी
भारत के प्राणों की धड़कन
उर की ज्योति-शिरा कल्याणी

8
देवि ! तुम्हारे छवि-चरणों पर
सकल प्रान्त श्रद्धा चढ़ा रहे
तमिल, तेलगू, मलयालम
कन्नड़ के मृदु स्तवन छा रहे
ओ सुहासिनी ! मधुरभाषिणी !! कोटि-कोटि उर-पुर निवासिनी !!!
तुमने अपने स्नेह-तंतु से प्रान्त-प्रान्त की आत्मा बुन दी
सिर-माथे आदेश तुम्हारा लेकर राष्ट्र-चरण पर देवी !
जितनी भी निधियाँ तुमने दीं, हमने एक-एक कर गिन दी
जय हिंदी ! जय-जय हे हिंदी !!!