हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक / ओम निश्चल
कहने को जनता की
कितनी मुँहबोली है,
सुख-दुख में शामिल है
सबकी हमजोली है,
कामकाज में लेकिन रत्ती-भर धमक है,
हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक है ।
ऊँचे आदर्शों के सपनों में खोई है,
किये रतजगे कितनी रात नहीं सोई है,
आज़ादी की खातिर बलिदानी वीरों की,
यादों में यह कितनी घुट-घुट कर रोई है ।
यों तो यह भोली है,
युग की रणभेरी है ।
लेकिन अँग्रेज़ी की
भृत्या है...चेरी है ।
हाथों में संविधान, फिर भी है तुच्छ मान,
आँखों में लेकिन पटरानी-सी ललक है,
हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक है ।
कितने ईनाम और कितने प्रोत्साहन हैं,
फिर भी मुखमंडल पर कोरे आश्वासन हैं ।
जेबों में सोने के सिक्कों की आमद है,
फाइल पर हिन्दी की सिर्फ़ हिनहिनाहट है ।
बैठक में चर्चा है
'दो...जो भी देना है,
महामहिम के हाथो
पुरस्कार लेना है ।’
कितना कुछ निष्प्रभ है, समारोह लकदक है,
शील्ड लिए हाथों में क्या शाही लचक है !
हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक है ।
इत्रों के फाहे हैं, टाई की चकमक है
हिन्दी की देहरी पर हिंग्लिश की दस्तक है ।
ऊँची दूकानों के फीके पकवान हैं,
बॉस मगर हिन्दी के परम ज्ञानवान हैं ।
शाल औ दुशाला है
पान औ मसाला है,
उबा रहे भाषण हैं
यही कार्यशाला है ।
हिन्दी की बिन्दी की होती चिन्दी-चिन्दी,
ग़ायब होता इसके चेहरे का नमक है ।
हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक है ।
हिन्दी के तकनीकी शब्द बहुत भारी हैं,
शब्दकोश भी जैसे बिल्कुल सरकारी हैं,
भाषा यह रंजन की और मनोरंजन की,
इस भाषा में दिखते कितने व्यापारी हैं ।
बेशक इस भाषा का
ऑंचल मटमैला है,
राष्ट्रप्रेम का केवल
शुद्ध झाग फैला है ।
दाग़ धुलें कैसे इस दाग़दार चेहरे के,
नकली मुस्कानें हैं, बेमानी ठसक है ।
हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक है ।
हिन्दी की सेवा है, हिन्दी अधिकारी हैं
खाते सब मेवा हैं, गाते दरबारी हैं ।
एक दिवस हिन्दी का, एक शाम हिन्दी की
बाक़ी दिन कुर्सी पर अँग्रेज़ी प्यारी है ।
कैसा यह स्वाभिमान
अपना भारत महान !
हिन्दी अपने ही घर
दीन-हीन, मलिन-म्लान
पाँवों के नीचे है इसके दलदल ज़मीन
नित प्रति बुझती जाती सत्ता की हनक है ।
हिन्दी के चेहरे पर चान्दी की चमक है ।