हिन्दी से एक वार्तालाप / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
हे हिन्दी! देवनागरी!
तुम माँ हो, बहन हो और बेटी भी हो
सबकी सच्ची सहेली हो
माँ की ममता से लबालब भरी हो
बहन और बेटी का स्नेह भी तुम में है
इतनी प्रेम सम्पदा के होते हुये भी
तुम उदास क्यों रहती हो?
हिन्दी ने धीरे-धीरे कहा-
मुझ में तो सभी कुछ है
प्यार, ममता, स्नेह और प्रेम भी
पर तुम बताओ इसे किस, पर न्योछावर करें
मैंने कहा-हे हिन्दी
तुम तो राष्ट्रभाषा हो, राजभाषा के पद पर हो
तब भी उदास क्यों हो?
हिन्दी मुसकराई-एक व्यंग भरी मुसकान
होंठो पर आई बोली
मैं सब कुछ हूँ
पर सच पूछो तो मैं कुछ भी नहीं हूँ
मेरे नाम पर लोग व्यापार करते
मुझको केवल एक दिन देते हैं
वास्तव में अपने ह्रदय से मुझे कोई नहीं चाहता
मैं राष्ट्र की सीमा लांघ कर
अंतराष्ट्रीय हो गई हूँ
विश्व के अनेक देशो में मेरा सम्मान होता है
पर अपने ही देश पराई हो गई हूँ
अँग्रेजी मेम मुझे बोलने ही नहीं देती
इस तरह मेरी उपेक्षा हो रही है
कहीं कहीं मैं होती भी हूँ तो मेरा लिपि नहीं होती
मुझे दूसरा देश धारण करना पड़ता है
और तो और बर्तनो की भूलें करके
मेरा स्वरूप बिगाड़ दिया जाता है
हिन्दी का शिक्षक हो थोड़ा-थोड़ा चाहता है
क्योंकि उसकी जीविका मुझसे चलती है
हों साहित्यकार अवश्य मुझसे लगाव मानता है
उसके ही बल पर मैं अभी तक पूरी तरह हताश नहीं हूँ
यह सच है कि मुझमें माँ की ममता बहन और बेटी का स्नेह
सब कुछ है पर इसको पाने वाले कहाँ है?
मेरा प्या? किसको दूँ यही प्रश्न है
मैं हिन्दी हूँ, राष्ट्र की बिन्दी हूँ पर
बिन्दी अब कौन लगाता है?