हिन्दुस्तान कन्ने हे? / सतीश मिश्रा
बड़ी धूमधाम से
एसो फिर, मनावल गेल विजयादशमी-दसहारा।
दू-दू, तीन-तीन महिन्ना के मेहनत से
तीन दिन वास्ते
बनल हवाई मन्दिर,
मन्दिर में आँख चौंधिआवे वाली सजावट,
सजावट के बीच
मारकाट के मुद्रा में तैनात दुर्गा जी के मूरत,
अगल-बगल में होइत हुमाद,
सप्तशती के पाठ,
आउ माथा पर बजइत लाउडस्पीकर-
हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी’।
जरावल गेल रावन के पुतला,
लगावल गेल राम के माथे विजय-तिलक
असरा जगल-
अब कोई सीताहरन न होएत।
मगर दोसरे दिन अखबार में पढ़ली-
‘युवती के साथ बलात्कार,
दो गिरफ्तार, चार फरार’
ठोकली कपार-
ई सोच के न कि रावन अभी जिन्दा हे
बलुक ई सोच के कि
एतना खुल्लमखुल्ला बात
हम काहे न समझ सकली
कि चन्दा उगाहे आउ चन्दा बाँटे वाला लोग
रावन के रेफ लगे से भी बचावित हलन,
सबके सामने
खाली ओकर पुतला जरावित हलन।