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हिन्दुस्तान / उमा शंकर सिंह परमार
Kavita Kosh से
1
पीठ पर लादे हुए
असीम पीड़ाओं का बोझ
भटकता मिला
दर-बदर
लोकतन्त्र की अन्धेरी
सँकरी गलियों मे
दुखित मन
थकित देही
हिन्दुस्तान
2
सजल नेत्र अकिंचन
सुरभित जन-गण-मन
सपनो से
रह-रह टपक रहे
काले इतिहास के पन्ने
दंगों के
लथपथ ख़ून से
सना बैठा था
हिन्दुस्तान
3
मन्दिर खड़ा है
हिन्दू खो गया है
मस्जिद खड़ी है
मुसलमान खो गया है
सियासत की
टेढ़ी राहों मे
हिन्दुस्तान खो गया है