भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिमाचल प्रदेश (एक) / ओक्ताविओ पाज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीचे पथरीली वनखण्डी के
खुले क्षितिज
देखे
छत्ता मधुमक्खियों का
घोड़े के मुँह जैसा
देखी घूर्मि पथराई
झूलते बगीचे मादक
बहुत बड़ा भौंरा एक
बैठा है सुगन्धि पर
चुपचाप
देखें ऋषि-मुनियों के पर्वत
चील भी जहाँ पर
लडख़ड़ाती
हवा में
(लड़की एक, बूढ़ी एक स्त्री-
ठठरी हड्डियों की,
गर बड़े शिखरों सम,
लिए चली जातीं)