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हिमालय / महेन्द्र भटनागर

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भारत-माँ का ताज हिमालय !
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ऊँचा-ऊँचा नभ को छूता,
  युग-युग जगने वाला प्रहरी,
जगमग-जगमग करता जिसमें
  किरनों से मिल बर्फ़-सुनहरी,
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तूफ़ानों का या हमलों का
  जिसको न कभी भी लगता भय !
  भारत-माँ का ताज हिमालय !
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  बहती जिसमें माला-सी दो
गंगा - यमुना की धाराएँ,
टकरा-टकरा कर छाती से
जिसके जाती बरस घटाएँ,
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हरी-भरी की धरती जिसने
किया हमारा जीवन सुखमय !
भारत-माँ का ताज हिमालय !