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हिमालय / विमल राजस्थानी

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बाहुपाश में भारत को भर, सर ऊँचा कर खड़ा हिमालय
हिन्द-मुकुट में विधि न मानो धवल-नवल नग जड़ा हिमालय
पूरब से पश्चिम तक
विस्तृत है मेरा हिम-अंचल
देता है पैंतीस कोटि को
तू ही अपना नीर-फूल-फल
विश्व-मंच पर भारत के गौरव का झंडा गड़ा हिमालय
कंठ-माल है गंगा तेरी
मानस तेरा मानसरोवर
नदियाँ तेरी हृदयहार हैं
अंग-स्वेद हैं तेरे निर्झर
भारत क्या ? सारे जग के हित तू अमृत का घड़ा हिमालय
युग-युग से तू मूक तपस्वी
करता है किसकी उपासना ?
चूम सकेगा अम्बर को क्या-
इसीलीए यह अमर साधना ?
क्या उसके ही चिर वियोग में बूँद-बूँद चू पड़ा हिमालय
बाहुपाश में भारत को भर, सर ऊँचा कर खड़ा हिमालय