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हिम्मत / बालमुकुंद गुप्त
Kavita Kosh से
‘कर नहीं सकते हैं’ कभी मुँह से कहो न यार,
क्यों नहीं कर सकते उसे, यह सोचो एक बार।
कर सकते हैं दूसरे पाँच जने जो कार,
उसके करने में भला तुम हो क्यों लाचार?
हो, मत हो, पर दीजिए हिम्मत कभी न हार,
नहीं बने एक बार तो कीजे सौ-सौ बार।
‘कर नहीं सकते’ कहके अपना मुँह न फुलाओ,
ऐसी हलकी बात कभी जी पर मत लाओ।
सुस्त, निकम्मे पड़े रहें आलस के मारे,
वही लोग ऐसा कहते हैं, समझो प्यारे।
देखो उनके लच्छन जो ऐसा बकते हैं,
फिर कैसे कहते हो, कुछ नहिं कर सकते हैं?
जो जल में नहिं घुसे, तैरना उसको कैसे आवे,
जो गिरने से हिचके, उसको चलना कौन सिखावे।
जल में उतर तैरना सीखो, दौड़ो, सीखो चाल,
‘निश्चय कर सकते हैं’ कहकर सदा रहो खुशहाल।
-साभार: बाल विनोद, गुप्त निबंधावली, स्फुट कविता 663-64