भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हियाँ न केवकै / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हियाँ न केवकै,
केव सुनवैया।
अपुनै मा है,
ता ता थैया॥

देखा जनता की छाती पै
सोझै धरी बबुर कै सिल्ली
बाटै बड़ी चिबिल्ली दिल्ली॥

बिना गाल के
गाल बजावैं
नवा नवा
फरमान सुनावैं

पूछैं पाँड़े काव निकारी
पहले पिल्ला पाछे पिल्ली
बाटै बड़ी चिबिल्ली दिल्ली॥

केउ महल मा
केउ टहल मा
केउ मोटान बा केउ मरघिल्ली
बाटै बड़ी चिबिल्ली दिल्ली॥

झुग्गी मा झोपड़ी मा दिल्ली
बड़ी बड़ी खोपड़ी मा दिल्ली
लालकिला मू गोड़ बढ़ाउतें
रस्ता काटि देत है बिल्ली
बाटै बड़ी चिबिल्ली दिल्ली॥